बन्द कमरे मे लेटा था मै बिल्कुल तन्हा अकेला,
छाई हुई थी उदासी उमड रहा था दिल मे यादो का मेला,
क्या करू क्या न करू ऊठू बैठू या फिर कोई चिन्ता ही पाल लू,
इसी कशमकश मे था..कि भीतर से एक डर ने कहा ले सभाल तू,
सभाले इस डर को निकला मै बाहर.. सहमा सहमा सा,
अपनी खामौशी को खुद ही सामे खुद ही बना गहमा गहमा सा,
पर बस सिफॅ अपने लिए..अपनी ही खामोशी सुनने के लिए,
अपनी ही तन्हाई से लडते हुए उससे गले मिलने के लिए,
ऐसे ही चलते चलते..सुना दूर बज रहा जो गाना होता है,
जब भी ये दिल उदास होता है.. जाने कौन आस पास होता है,
अईयो..भागा मै वापस.. हाथ धोये साबुन से.. सैनेटाईज किये,
चेहरे पर हसी ओढी.. लगाया ये गाना.. अपने लिये जिये तो क्या जिये.... 🙂🙂🙂🌅☀️🙂🙂🙂
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