Monday 23 November 2020

Drunk n drunkerd..

Drunked if you are or say one is or say if I am,

Though I am not..

Then stop being one such & begin being one  natural as one aam,

Vyakti.. Admi or say a person who went & did go through a lot,
In daily life from this to that & suffered but why?? give a thought,

Chamchas though did never & all because they may have sold their consciences,
For a few more facilities n in life getting much better choices,

क्या थी वो और क्या हैं या होगीं या हो सकती हैं.. how do I get to know,
क्योंकि मैंने तो कभी भी कुछ पूछा नहीं though they may reap what they sow,

Karmas you know leave none hence to each as per their deeds,
People come people go life goes on..Some fail some succeed,

Some remains partial & biased though some are always fair,
To the core of their heart with mind body & soulful care,

But then why in some as drunk only selfishness & cruelty flow,
No one knows though morals in their life are always low..

At cost of everything & @ the rate of all betrayals..
                                       🙏🙏..


Sunday 15 November 2020

चलो जाने दो.. Ok let's go..

पर कभी किसी को ज़रा सी भी शर्म आई या कोई फ्रक पडा,
नहीं बिलकुल ही नहीं.. क्योंकि उनकी दुनिया मे था खडा,

भेदभाव पैसा रिश्ते और इन आऊस लेविस डेकोरेशनस
नहीं हैं भाई सारी साहब.. फिर भी ये भी घर है इन सबमेशन,

घर है ये अपना और जी.. साहब थे तुम.. और मत बोलो हो एक भाई,
दिल से खून से या चलो वैसे ही.. पर नही थी कहने मे कोई गहराई,

एक अपने कारोबार का सशक्त यहाँ बना अनफिट और रोंदू,
खुद होता वहाँ तो क्या करता क्या रहता बना एक भोंदू,

बिल्कुल नही.. टैक्सी आती कार आती या फिर खुद के अपने आते,
पर दो माह अपने लिए सिर्फ भाई भाई .. पर कौन सा और किस खाते,

 चलो फिर भी.. पर फिर भी कितना समझा गर दिल से कहा था भाई,
ईश्वर जाने और ईश्वर ही समझेंगे इस खुदगर्जी वाली प्रीत पराई,

पैसा पैसा ही तो था और पैसा अब भी है इनके जीवन मे रिश्ते,
अमीर हो तो बुला लोगे.. पर गरीब को भी क्या कह सकते हो आ न यार इस रस्ते...

         कभी नही..  But I let go n move on .. 🙏🙏..

           







Saturday 14 November 2020

एक दिन..

मुफलिसी के दिन थे पर थी ख्वाहिशे हजारों ,
जेब मे न था एक धेला पर थी सपने मे कोई पारो,

सुनता था रोज बापू के ताने पर आये न मुझे बनाने बहाने,
कि कह दूं उनसे कि क्या करूँ किस्मत का जो मेरी न माने,

कहते है कि फूंटी तकदीर की होती नही कोई नुमाइश,
मैं भी चुप रहा ये सोच कि शायद कोई देखेगा ये आजमाईश,

देखा भी और शायद जाना भी दुनिया ने पर फिर भी,
मैंने भी कहा कोई नी.. मैं खुश हूँ पर मैं सह लूगाँ ये बेरुखी,

फिर दिल ने कहा जाने दे यार और देखना एक दिन,
तेरा भी टेम आयेगा जब तेरे सपने न होगें छिन्न भिन्न,

तो इस एक दिन की हसरतों मे गुजार देता हूँ मै अपना वक्त,
क्या करे शिकायत जिन्दगी से और सुनेगा भी कौन सशक्त,

एक दिन और वो दिन होगा कैसा पर तब क्या होगी शिद्दत,
जीने की रहने की खाने की पीने की या कहूँ तो क्या निकलेगी अपनी मईत,

कौन जाने उस इक दिन के बारे.. 🙂👍🙏...