Saturday 14 November 2020

एक दिन..

मुफलिसी के दिन थे पर थी ख्वाहिशे हजारों ,
जेब मे न था एक धेला पर थी सपने मे कोई पारो,

सुनता था रोज बापू के ताने पर आये न मुझे बनाने बहाने,
कि कह दूं उनसे कि क्या करूँ किस्मत का जो मेरी न माने,

कहते है कि फूंटी तकदीर की होती नही कोई नुमाइश,
मैं भी चुप रहा ये सोच कि शायद कोई देखेगा ये आजमाईश,

देखा भी और शायद जाना भी दुनिया ने पर फिर भी,
मैंने भी कहा कोई नी.. मैं खुश हूँ पर मैं सह लूगाँ ये बेरुखी,

फिर दिल ने कहा जाने दे यार और देखना एक दिन,
तेरा भी टेम आयेगा जब तेरे सपने न होगें छिन्न भिन्न,

तो इस एक दिन की हसरतों मे गुजार देता हूँ मै अपना वक्त,
क्या करे शिकायत जिन्दगी से और सुनेगा भी कौन सशक्त,

एक दिन और वो दिन होगा कैसा पर तब क्या होगी शिद्दत,
जीने की रहने की खाने की पीने की या कहूँ तो क्या निकलेगी अपनी मईत,

कौन जाने उस इक दिन के बारे.. 🙂👍🙏...







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